My Blog List

Thursday, 28 November 2013

हळदीघाटी

कोनी कोरो नांवरेत रो हळदीघाटी,
अठै उग्यो इतिहासपुजीजै इण री माटी, 

कण-कण घण अणमोलरगत स्यूं अंतस भीज्यो।

नहीं निछतरी भोमगिगन रो हियो पतीज्यो, 

गूंजी चेतक टापजुद्ध रा ढोल घुरीज्या,

पड़ी ना’र री थापजुलम रा पग डफळीज्या, 

राच्यो रण घमसाणबाण स्यूं भाण ढकीज्यो।

लसकर लोही झ्याणअथग खांडो खड़कीज्यो, 

मूंघी मोली राड़स्याळ स्यूं सिंग अपड़ीज्यो,

दब्यो दरप रो सरपसांतरो फण चिगदीज्यो, 

नहीं तेल नारेळभटां रा मूंड चढीज्या,

धड़ लड़ धोयो कळखजबर दुसमण रळकीज्या,

दीन्ही गोडी टेकअठै आयोड़ी हूणी,

माथै लगा बभूतपूत, जामण री धूणी, 

थिरचक डांडी साचपालड़ै तिरथ तुलीजै।

इण री चिमठी धूळबापड़ो सुरग मुलीजै।

रचनाकार: कन्हैया लाल सेठिया 


No comments:

Post a Comment